बचपन मे मै अपने साथियों और दोस्तों के साथ गली के बाहर खुली जगह मे नीम के पेड की छाया मे बहुत से खेल जैसे गुली डंडा, कंचे, लट्टू खेलता था । मेरे स्कूल मे भी हम सभी पीपल, नीम और बरगद का पेड की छाया मे भी बहुत खेला करते थे। जब स्कूल मे बिजली चली जाती थी तो हमारे टीचर्स हमे इन पेडो के नीचे शिक्षा देते थे। जब कभी हम चोट लग जाती थी तो नीम का पतों को पानी मे उबाल कर एंटी-सेप्टिक के तोर पर इस्तमाल किया करते थे। पीपल की पेड को सीचा जाता था । बरगद और पीपल का घनी ढंडी छाया मे सुस्ताना याद आता है। अब जब भी कभी मै गर्मियों की धुप मे कही जाता हु तो उन वृक्षो की याद आती है क्योंकि आजकल सड़क के किनारे ऐसे पेड बहुत ही कम या यु कहू की देखने को नही मिलते। अब तो नीम, बरगद और पीपुल के पेड मेरे घर या ऑफिस के नजदीक मे भी नही है । आधुनिकरण की दौड़ मे हमने अपनी विरासत मे मिले इन जीवनदायिनी वृक्षो को काट डाला यह जानते हुवे की पेड हमारा वातावरण प्रकीर्या का बहुत ही महत्वपूरण हिस्सा है। आज की नई जेनरेशन इन पेडो के बारे मे कुछ भी नही जानती या फिर बहुत थोड़ा जानती है क्योंकि अब हम नीम, पीपल और बरगद जैसे पेडो का पोधारोपण नही करते। आज ग्लोबल वार्मिंग बदती जा रही है और विश्व स्तर पर इसकी रोकथाम के लिये सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्था कार्यरत है । मै सोचता हु की सरकार को यह कानून बनाना चाहीये की हरेक मोहल्ले , गली, सेक्टर, कालोनी मे कम से कम नीम, पीपल और बरगद का एक एक वृक्ष अवश्य हो। ग्रीन बेल्ट , रोड के मध्य और किनारों, रेलवे प्लेटफार्म पर ये वृक्ष लगाये जाये । रेलवे प्लेटफार्म से याद आया की शकूरबस्ती स्टेशन , दिल्ली पर लगे जामुन के पेड, कभी वहा जाये तो जरुर देखना। अब तो जामुन बहुत महँगा मिलता है क्योंकि बहुत कम पेड बचे है। कभी कभी लगता है की आने वाले ३०-४० सालो मे बहुत सारा फल तथा सब्जिया मिलनी बंद हो जायेगी क्योंकि खेत खलिहान पर फ्लैट, ऑफिस और मार्केट बनते जा रहे है ।
आप सभी अपना विचार व्यकत करे की कैसे हम अपनी बहुमूलय विरासत को बचाय तथा आने वाली पीदियों को विरासत मे एक साफ , अच्छा और सवस्थ वातावरण उपलब्ध करवाये ।
इस लेख मे कही कही टाइपिंग की गलतिया है , कृप्या उन पर धयान मत देना, में पहली बार हिन्दी मे ब्लॉग्गिंग कर रहा हु।
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