आज मैंने एक बहुत ही अच्छी कविता पढ़ी जिसमे लिखने वाले ने ज़िंदगी को बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में ब्यान किया है
कविता इस प्रकार है , लेखक को आभार
कोई खुशियों की चाहत में रोया,
कोई दुखों की पनाह में रोया.
अजीब सिलसिला है,
इस ज़िन्दगी का.
कोई भरोसे के लिए रोया,
कोई भरोसा कर के रोया.!
"खुशी" ने वादा किया था वो,
पांच दिन बाद लौट आएगी.
पर जब हमने "ज़िन्दगी" की,
किताब खोल कर देखी.
तो कमबख्त ज़िन्दगी ही,
चार दिन की थी.!
कविता इस प्रकार है , लेखक को आभार
कोई खुशियों की चाहत में रोया,
कोई दुखों की पनाह में रोया.
अजीब सिलसिला है,
इस ज़िन्दगी का.
कोई भरोसे के लिए रोया,
कोई भरोसा कर के रोया.!
"खुशी" ने वादा किया था वो,
पांच दिन बाद लौट आएगी.
पर जब हमने "ज़िन्दगी" की,
किताब खोल कर देखी.
तो कमबख्त ज़िन्दगी ही,
चार दिन की थी.!