चाहे शराफत का कोई मोल नहीं
चाहे प्यार का कोई महत्व नहीं
चाहे भाईचारा पीछे रह गया
चाहे भलाई नहीं दिखती कही
और मै भी बनता बेईमान
और मै भी करता चालाकी
और मैं भी बोलता झुठ
और मैं भी करता काम द्रेष , लोभ और रिश्वत से
तो शायद होती मेरे पास भी झूठी दौलत
तो शायद होता मेरे पास भी ऊंचा मकान
तो शायद होती मेरे पास भी बड़ी कार
तो शायद होता जिक्र अमीरो में मेरा भी
पर , पर, पर
मर जाते संस्कार मेरे
मर जाता अंदर का इंसान मेरा
मर जाता स्वाभिमान मेरा
मर जाती शराफत मेरी
फिर सोचता हूँ की
क्या कहता मै भविष्य से
क्या कहता मै अपने भगवान से
क्या उठा पाता अपना सर गर्व से
क्या होती मेरी आत्मा मै शांति
शायद इसलिए शराफत जिन्दा है मेरी आज भी
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