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Friday, February 2, 2018
Wednesday, January 31, 2018
जब ना कोई फ़िक्र थी
आज शाम आसमान के क्षितिज पर
जब देखा उभरे हुए चाँद की लकीर को
याद आ गया फिर गुजरा समय
जब ना कोई फ़िक्र थी
ना कोई जिम्मेवारी थी
घूमते थे, खेलते थे मस्त थे
चाहे सर्द शाम हो या गर्म दोपहर हो
बारिश हो या फिर तुफान
ना कोई फ़िक्र थी
ना कोई जिम्मेवारी थी
पर अब तो समय नहीं है अपने लिए
काम बहुत है एक पूरा तो दूसरा अधुरा
याद आ गया फिर गुजरा समय
जब ना कोई फ़िक्र थी
ना कोई जिम्मेवारी थी
जब देखा उभरे हुए चाँद की लकीर को
याद आ गया फिर गुजरा समय
जब ना कोई फ़िक्र थी
ना कोई जिम्मेवारी थी
घूमते थे, खेलते थे मस्त थे
चाहे सर्द शाम हो या गर्म दोपहर हो
बारिश हो या फिर तुफान
ना कोई फ़िक्र थी
ना कोई जिम्मेवारी थी
पर अब तो समय नहीं है अपने लिए
काम बहुत है एक पूरा तो दूसरा अधुरा
याद आ गया फिर गुजरा समय
जब ना कोई फ़िक्र थी
ना कोई जिम्मेवारी थी
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